‘मुख्यमंत्री जी हमसे मिलो’ पोस्टर जारी
विधानसभा के दौरान सड़क पर उतरने का ऐलान...
जयपुर। चलो नायला संगठन के आह्वान पर नायला पत्रकार नगर के 571 आवंटी पत्रकारों का आंदोलन रविवार को 14वें दिन भी जारी रहा। रविवार को अवकाश के चलते आवंटी पत्रकारों का जत्था तो सीएमआर नहीं गया, लेकिन दूरभाष पर सीएम से मिलने के लिए समय मांगा गया। आवंटियों की रविवार को विशेष ग्रुप मीटिंग में आगामी रणनीति पर चर्चा हुई और विधानसभा शुरू होने के साथ ही आंदोलन तेज कर सड़क पर उतरने का निर्णय किया गया। इस मौके पर ‘मुख्यमंत्री जी हमसे मिलो’ पोस्टर भी जारी किया गया।
14 दिन से लगातार मुख्यमंत्री निवास पर पहुंचकर मिलने का समय मांगने पर भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समय नहीं देने पर आवंटियों ने तीखी नाराजगी जताई। आवंटी पत्रकारों का मानना है कि मुख्यमंत्री गहलोत को 571 आवंटियों के सम्बन्ध में कुछ अधिकारी भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि उन्हें पिंकसिटी प्रेस एनक्लेव, नायला के वास्तविक तथ्यों का ज्ञान ही नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण दत्ता ने बताया कि यूडीएच के प्रमुख सचिव का कहना है कि हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार सिर्फ अधिस्वीकृत पत्रकारों को ही प्लॉट दिए जा सकते हैं। जबकि आदेश में ऐसा नहीं है। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि यही मामला किसी धनपति को जमीन देने का होता तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले भी दरकिनार कर दिए जाते। यह कैसी सरकार है जो दस साल में भी हाई कोर्ट के आदेश पर एजी और एएजी की राय नहीं ले सकी। बेहद अजीब है कि सरकारें आरक्षण के मुद्दे पर बड़े बड़े वकील खड़े कर सकती है, लेकिन एक सामान्य आदेश की सही व्याख्या भी नहीं कर सकी है। इस पर अन्य आवंटी पत्रकारों का कहना था कि यूडीएच के प्रमुख सचिव, जो कि राज्य स्तरीय पत्रकार आवास समिति के अध्यक्ष भी हैं। वे भूल रहे हैं कि 1 अप्रेल, 2011 से 14 मार्च, 2012 तक वे डीआईपीआर में कमिश्नर रहे थे। उन्होंने ही तो पिंकसिटी प्रेस एनक्लेव, नायला के लिए नियम व पात्रताएं निर्धारित की थी। ऐसे में 571 के चयन पर सवाल उठाना सरासर गलत है।
नगरीय विकास विभाग के उस समय जारी आदेशों में राजस्थान अधिस्वीकरण नियम 1995 को ध्यान में रखते हुए नायला योजना की पात्रता में पांच वर्षीय सक्रिय पत्रकारिता के अनुभव को प्रमुख पात्रता तय किया गया था, जिसके आधार पर पूरे राजस्थान में पत्रकारों को प्लॉट आवंटित किए गए हैं। न्यायालय के आदेश में भी नियम 1995 की पालना पर जोर दिया गया है, न कि अधिस्वीकरण प्रमाण पत्र मांगने की बात कही है। आवंटी पत्रकारों ने अखबारों के जरिये अधिकारियों की पोल खोलो अभियान भी छेड़ने पर चर्चा की।
मुख्यमंत्री जी को इस मामले में दखल देकर नगरीय विकास विभाग के 20 अक्टूबर, 2010, 4 जनवरी, 2011 और 28 फरवरी, 2013 के नीतिगत आदेशों की पालना करानी चाहिए। जिससे कि 571 आवंटियों के साथ न्याय हो सके। मीटिंग में सभी ने एक स्वर में तय किया कि मुख्यमंत्री से मिलने के लिए जत्थों का सीएमआर जाने का क्रम अनवरत जारी रहेगा और जल्द ही सभी जत्थों का मुख्यमंत्री निवास तक एक साथ पैदल मार्च भी होगा।
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