बच्चों का इम्यून सिस्टम उन्हें रोगों से प्रतिरक्षा देता है - डॉ. पी.डी. गुप्ता
जयपुर। वैज्ञानिक, विशेषज्ञ एवं अन्य सूत्र भारत में जल्द ही कोरोना की तीसरी लहर की उम्मीद कर रहे हैं, वे उम्मीद कर रहे है कि इस बार यह लहर बच्चों के लिए ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है। क्या हम सभी बुजुर्ग, युवा और बच्चे तीसरी लहर से लड़ने के लिए तैयार हैं?
सरकारों ने क्या इसके बचाव एवं इलाज के इंतजामात कर लिए हैं। यदि बच्चों में इसका ज्यादा प्रभाव दिखाई देता है तो बच्चों में इम्यून सिस्टम के बारे में भी हमें जानना जरूरी है। शिशुओं की प्रतिरक्षा प्रणाली वयस्कों की तरह मजबूत नहीं होती है। बच्चों को स्तनपान और उन्हें नियमित लगने वाले टीकाकरण से गंभीर बीमारियों से बचाने में मदद मिलती है। यह कहना है डॉ. पी.डी. गुप्ता, पूर्व निदेशक ग्रेड साइंटिस्ट, सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, हैदराबाद का।
हमने इस बारे में डॉ. पी.डी. गुप्ता, पूर्व निदेशक ग्रेड साइंटिस्ट, सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, हैदराबाद से जानना चाहा कि संभावित कोरोना की तीसरी लहर से हमारे देश में किस प्रकार समय से पूर्व में सतर्क रह कर बच्चों को होने वाले खतरों से बचाया जा सकता है ? डॉ. गुप्ता काफी प्रसन्न हुए और कहने लगे कि यह बात जनहित को ध्यान में रखते हुए ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचनी चाहिए कि संभावित तीसरी लहर में किन बच्चों को ज्यादा नुकसान की संभावनाएं हो सकती है।
यह बताते हुए उन्होंने कहा कि छोटे बच्चों में मां के दूध के माध्यम से एंटीबॉडी और पोषक तत्व मां से बच्चे में पहुंचते हैं। स्तनपान बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने में मदद करता है।
प्रतिरक्षा प्रणाली क्या है ?
प्रतिरक्षा प्रणाली कोशिकाओं और प्रोटीन का एक नेटवर्क है जो शरीर को संक्रमण से बचाती है। यदि बैक्टीरिया, वायरस या अन्य बाहरी पदार्थ शरीर में प्रवेश करते हैं, तो श्वेत रक्त कोशिकाएं इसकी पहचान करती हैं और संक्रमण के प्रति एंटीबॉडी और अन्य प्रतिक्रियाएं पैदा करती हैं। वे बैक्टीरिया, वायरस या अन्य हमले को 'याद' भी रखते हैं ताकि वे अगली बार इसे और आसानी से लड़ सकें।
डॉ. गुप्ता ने बताया कि जन्म के समय बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली अपरिपक्व होती है। यह जीवन भर विकसित होती रहती है क्योंकि वे विभिन्न रोगाणुओं के संपर्क में आते हैं जो बीमारी का कारण बन सकते हैं। गर्भावस्था के अंतिम 3 महीनों के दौरान प्लेसेंटा के माध्यम से मां से बच्चे में एंटीबॉडी का संचार होता है। इससे बच्चे को जन्म के समय सुरक्षा मिलती है। बच्चे को दिए जाने वाले एंटीबॉडी का प्रकार और मात्रा मां की अपनी प्रतिरक्षा के स्तर पर निर्भर करती है।
उन्होंने बताया कि जन्म के दौरान, मां की योनि से बैक्टीरिया बच्चे को जाता है। यह आंत में बैक्टीरिया का समूह बनाने में मदद करता है जो उनकी प्रतिरक्षा में योगदान देता है। लेकिन सी-सेक्शन (ऑपरेशन) से जन्म लेने वाले बच्चों में 2 साल तक प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित नहीं होती है और वे आसानी से संक्रमण के शिकार हो जाते हैं।
जन्म के बाद, बच्चे को कोलोस्ट्रम और स्तन के दूध में अधिक एंटीबॉडी दिए जाते हैं। लेकिन शिशुओं की प्रतिरक्षा प्रणाली वयस्कों की तरह मजबूत नहीं होती है। समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों और ऑपरेशन के माध्यम से पैदा होने वाले शिशुओं में संक्रमण का अधिक खतरा होता है क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली और भी अधिक कमजोर होती है और उनमें उनकी माताओं से उतने एंटीबॉडी नहीं प्राप्त होते हैं।
डॉ. गुप्ता ने कहा हर बार जब बच्चे किसी वायरस या रोगाणु के संपर्क में आते हैं तो वे अपने स्वयं के एंटीबॉडी पैदा कर लेते हैं, लेकिन इस प्रतिरक्षा को पूरी तरह से विकसित होने में समय लगता है। जन्म के समय माँ से प्राप्त निष्क्रिय प्रतिरक्षा भी लंबे समय तक नहीं रहती है और जन्म के बाद शुरू के कुछ हफ्तों और महीनों में ही घटने लगती है। इसलिए हमें अपनी आने वाली पीढ़ी के प्रति सतर्क और जागरूक रहकर उन्हें कोरोना जैसी घातक बीमारी से बचाने के लिए आज से ही पूरा ध्यान देकर बच्चों के भविष्य को बीमारी से बचाने के लिए प्रयास करने चाहिए और दूसरे लोगों को भी बच्चों की सेहत (इम्म्यून सिस्टम) और देखरेख के लिए सचेत करना चाहिए।
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