बिजली का पूरा डाटा निजी हाथों में !

> कंपनी ने किया बड़ा फर्जीवाड़ा फिर भी दे दिया टेंडर
> रीडिंग लेने से लेकर बिल देने का काम कंपनी के पास



हरीश गुप्ता
जयपुर। धन्य है राज्य का बिजली महकमा। बिजली का पूरा डाटा निजी हाथों में दे रखा है, फिर भी अधिकारी मुंगेरीलाल के हसीन सपने देख रहे हैं और कह रहे हैं पूरे नियंत्रण हमारे पास ही हैं। यह तो तब है, जबकि कंपनी ने बड़ा फर्जीवाड़ा कर टेंडर हथिया लिया।


सूत्रों ने बताया कि बिजली मित्र डॉट कॉम यह सरकारी वेबसाइट है, जिसमें राज्य के प्रत्येक उपभोक्ता का बिजली उपभोग का डाटा रहता है, उसका मालिकाना हक सरकार के पास ही नहीं है। दरअसल यह टेंडर सितंबर 2017 में हैदराबाद की कंपनी बीसीआईटीएस को दे दिया था।


सूत्रों की मानें तो उस समय विभाग में मौजूद एक आला अधिकारी को सरकार की पूरी योजना की जानकारी थी। दूसरे शब्दों में कहें तो योजना ही वही तैयार करते थे। उधर बीसीआईटीएस कंपनी ने जून 2017 में ही इस नाम का डोमिन अपने नाम से और अपने अधिकार में ले लिया। अब सवाल खड़ा होता है कंपनी को कैसे सपना आया कि राजस्थान के विद्युत विभाग को इस नाम के डोमिन की जरूरत पड़ने वाली है? सीधा सा शक जाता है कि तत्कालीन प्रभावशाली अधिकारी के इशारे पर ऐसा हुआ। चर्चाएं जोरों पर है, 'उन श्रीमान की मिलीभगत या हिस्सेदारी से भी इनकार नहीं किया जा सकता।'


जानकारी के मुताबिक इससे बड़ा मजाक क्या हो सकता है कि टेंडर प्रक्रिया पूरी होने से पहले बीसीआईटीएस कंपनी बिजली मित्र डॉट कॉम को बुक कर लेती है। क्या उसे पता था कि शर्तिया टेंडर उसे ही मिलेगा? वरना एक कंपनी 6 महीने पहले कोई डोमिन क्यों बुक कराएगी?


सूत्रों ने बताया कि सरकार के सभी विभागों की सरकारी वेबसाइट के अंत में जीओवी डॉट आईएन होती है जिससे सरकार का उस पर नियंत्रण रह सके, बिजली मित्र को भी ऐसा क्यों नहीं किया गया? 'खेल' करने वाले श्रीमान चाहते ही नहीं थे कि सरकार का इस पर नियंत्रण रह सके।


गलत उपयोग की संभावना :
आज की स्थिति के अनुसार प्रत्येक उपभोक्ता की बिजली उपयोग की जानकारी बीसीआईटीएस के पास है। वह कभी भी गलत उपयोग कर सकती है, कर भी रही हो तो क्या पता। अब सवाल उठता है गलत उपयोग कैसे हो सकता है? मसलन कोई लग्जरी कार बेचने वाली कंपनी 1 लाख से ज्यादा का घर का बिजली का बिल आने वाले लोगों का डाटा कंपनी से खरीद लेगी और केवल उन लोगों को ही कार के लिए संपर्क करेगी।


क्या कहते हैं अधिकारी :
इस मामले में जे वी वी एन एल के प्रबंध निदेशक ए के गुप्ता का कहना है, 'डाटा का काम हमने एक एजेंसी को दे रखा है। मालिकाना हक भी उसी के पास है, लेकिन पूरी तरह से हमारे नियंत्रण में है।


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