माध्यमिक शिक्षा बोर्ड पाठ्य पुस्तको मे दे रहा भ्रामक जानकारी, मेवाड को कलंकित करने का प्रयास



उदयपुर। राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा मनमाने तरीके से कक्षा 10वीं तथा 12 वीं की पाठ्य पुस्तकों में किए गए परिवर्तनों की वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति उदयपुर भर्त्सना करती है तथा अपने राजनैतिक मंसूबे पूरे करने के लिए महाराणा प्रताप तथा मेवाड़ के इतिहास से बदनीयतीपूर्ण इरादों के साथ की गई छेड़छाड़ को घोर आपत्तिजनक मानती है।
यह सर्वविदित है कि राज्य में कांग्रेस सरकार बनते ही,इस सरकार ने माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम में विकृतियाँ लाना प्रारंभ कर दिया। इसी प्रयोजन के दृष्टिगत प्रो. बी.एम.शर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी का निर्माण किया, जिसने पाठ्यक्रम संबंधी इतिहास पुस्तकों में अनावश्यक परिवर्तन प्रारंभ कर दिया, आश्चर्य का विषय तो यह है कि पूर्व में नियुक्त विषयानुसार संयोजकों को न तो बदला और न ही इन परिवर्तनों पर उनसे किसी प्रकार का मशवरा किया, फिर भी पाठ्य पुस्तकों में पूर्व के संयोजकों का नाम यथावत रख दिया। ऐसे सभी संयोजक, बी.एम.शर्मा तथा सरकार द्वारा किए गए दुष्कृत्यों से अपना नाम जुड़ा देख कर मर्माहत अनुभव कर रहे हैं। इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि कक्षा 12 भारत का इतिहास में   "मुस्लिम आक्रमण : उद्देश्य और प्रभाव" के अंतर्गत हल्दीघाटी युद्ध का वर्णन करते हुए प्रताप की हार तथा उसके कारणों का उल्लेख है,  लिखा गया है कि सेना नायक में प्रतिकूल परिस्थितियो में जिस धैर्य, संयम और योजना की आवश्यकता होनी चाहिए, प्रताप मे उसका अभाव था। यह तथ्य न केवल विकृत मष्तिष्क की सोच है, अपितु विश्व इतिहास के अभूतपूर्व योद्धा महाराणा प्रताप की छवि को जान बूझकर धब्बा लगाने का प्रयास है, जिसे किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नही किया जा सकता।


तथ्य यह है कि अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फजल से लेकर, हल्दीघाटी युद्ध में उपस्थित बंदायूनी तक सभी एकमत से स्वीकार करते हैं कि हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना के दो ओर से किए गए आक्रमण को मुगल सेना झेल नही पाई और 15 से 20 कि.मी. तक भागती चली गई। महाराणा प्रताप की छापामार युद्ध नीति से लेकर सेना के दो हिस्सों को एकत्रित कर युद्ध के मैदान से पहाड़ों की ओर ले जाने तथा पूर्व नियोजित समयबद्ध पलायन की कूटनीति ने अकबर द्वारा भेजे गए मानसिंह की सेना के साहस तथा युद्ध कौशल के परखच्चे उडा दिए थे। यहां तक कि बंदायूनी लिखता है कि  मुगल सेना डर के मारे महाराणा प्रताप का पीछा तक न कर सकी। मुगलों के दूसरे दिन गोगुंदा पहुंचने तथा वहाँ हुई उनकी दुर्गति का वर्णन अकबरनामा में भी विस्तार से लिखा गया है।


मानसिंह द्वारा अकबर को युद्ध की भेजी गई रिपोर्ट को स्वयं अकबर ने विश्वसनीय न मानते हुए अपने विशेष प्रतिनिधि को भेज वास्तविक स्थिति का पता लगाया और इस आधार पर मानसिंह तथा मीर बख्शी आसफ खां को हल्दीघाटी युद्ध की पराजय के परिणामस्वरूप मुगल दरबार में उपस्थित होने पर रोक लगाई। इसी के साथ यह भी समझना चाहिए कि अकबर ने मानसिंह को महाराणा प्रताप को जीवित या मृत पकडकर ले जाने का आदेश दिया था, जिसे मानसिंह पूरा न कर सका। उपरोक्त सभी तथ्य हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की पराजय को पुरजोर तरीके से नकारते है। ये सभी तथ्य पूर्व में प्रकाशित सामाजिक विज्ञान की कक्षा 10 की पुस्तक में थे जो हल्दी घाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की विजय की उद्घोषणा करते थे, ऐसे सभी शोधों से प्रमाणित ऐतिहासिक तथ्यों को जानबूझकर षडयंत्र पूर्वक पुस्तकों से हटा दिया गया है। उपरोक्त तथ्य यह भी सिद्ध करते हैं कि प्रताप का व्यक्तित्व न केवल अकबर से कई गुणा अधिक प्रभावी था अपितु धैर्य,संयम तथा योजना पक्ष की दृष्टि से अभूतपूर्व था।राज्य सरकार द्वारा बनाई गई कमेटी की दूषित मानसिकता इसके उलट महाराणा प्रताप के यश को मिट्टी में मिलाने का काम कर रही है।


इसी क्रम में पाठ्यपुस्तकों में हल्दीघाटी के नामकरण को लेकर हास्यास्पद कारण दिए गए हैं। यह सर्वविदित है कि हल्दीघाटी के मिट्टी का रंग पीला होने से युद्ध के पहले से ही अरावली पर्वतमाला के इस दर्रे का नाम हल्दीघाटी था। किसी महेन्द्र भाणावत नाम के इतिहास की दृष्टि से अज्ञात लेखक की पुस्तक के हवाले से युद्ध में प्रताप की पत्नी के नेतृत्व में नवविवाहिताओं के लड़ने की कपोल कल्पना आधारित बातों को विद्यार्थियों को पढाया जाना मेवाड़ के इतिहास के साथ किया जाने वाला अक्षम्य अपराध है।
उदयसिंह को हत्यारा कहकर इस कमेटी ने अपने शैतानी इरादों और धूर्तता की पराकाष्ठा कर दी है। जिन महाराणा उदयसिंह की बचपन में हत्या करने का प्रयास बनवीर ने किया था, उसी बनवीर की हत्या का दोषी उदयसिंह को ठहराया जाना सर्वथा अनुचित है।1540 ई. में उदयसिंह तथा बनवीर की सेनाओं के मध्य हुए मावली के युद्ध में बनवीर की उपस्थिति का कोई प्रमाण नही मिलता है। मावली के युध्द में विजय के पश्चात उदयसिंह के द्वारा चितौड घेरे जाने तथा बाद में किले में प्रवेश के पूर्व ही बनवीर वहाँ से भाग गया था जो कुछ इतिहासकारों के अनुसार बाद में महाराष्ट्र चला गया और वहाँ उसकी स्वाभाविक मृत्यु हुई।ऐसे सभी प्रसंग इतिहासकारों ने विभिन्न पुस्तकों में उल्लेख किए हैं। इस विषय में यह भी महत्वपूर्ण है कि युद्ध में किसी व्यक्ति के मारे जाने को हत्या नही कहा जाता।


इतिहास विद्यार्थियों मे शिक्षा व प्रेरणा प्राप्त करने के लिए होना चाहिए न कि उन्हे संस्कार विहीन करने के लिए। राज्य सरकार तथा उसके द्वारा गठित कमेटी ने इतिहासकारों द्वारा स्थापित तथ्यो ,शोधों तथा मान्यताओं से उलट कपोल कल्पित बातों के आधार पर मनगढंत घटनाओं एवं प्रसंगो के बल पर मेवाड़ तथा महाराणा प्रताप के विषय में असम्मानजनक तथ्य लिखकर अपनी कुत्सित प्रवृतियों तथा गुलाम मानसिकता का ही परिचय दिया है।


वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति उदयपुर मांग करती है कि पाठ्यक्रम परिवर्तन कमेटी के अध्यक्ष प्रो.बी.एम.शर्मा इस्तीफा दें तथा माफी मांगे अन्यथा उन पर ऐतिहासिक तथ्यों के साथ आपराधिक छेडछाड का मुकदमा दर्ज किया जाए। राज्य सरकार तथा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अनाप-शनाप तथ्यों को अविलम्ब पाठ्य पुस्तकों तथा ई-पुस्तको से हटाए, वरना वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति उदयपुर इस संबंध मे समस्त राजस्थान के विभिन्न संगठनों, व्यक्तियों के साथ मिलकर संघर्ष करेगी। राज्य सरकार द्वारा मेवाड़ तथा महाराणा प्रताप के महत्व को कम करके आंकने अथवा सिद्ध करने का कोई भी प्रयत्न सफल नही होने दिया जाएगा। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति राज्य सरकार को आगाह करती है कि इन घटिया हरकतों से बाज आए अन्यथा गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।


प्रारंभ मे समिति अध्यक्ष गोविन्द सिंह टांक ने प्रताप गौरव केंद्र के बारे मे जानकारी दी साथ ही उन्होने हल्दीघाटी युद्ध के निमित्त अकबर द्वारा मानसिंह की ढयोडी बंद करने की बात पर विचार करने की बात कही।इतिहासविद के एस गुप्ता ने कहा कि आने वाली पाठ्य पुस्तको मे समय रहते सही इतिहास की जानकारी देने की बात कही। डा.देव जी कोठारी ने कहा कि मेवाड के इतिहास को कलंकित करने का प्रयास किया जा रहा है। सच्चाई सामने लाने की आवश्यकता है। वर्ग विशेष को खुश करने का प्रयास किया जा रहा है।


महामंत्री प्रमेन्द्र दशोरा ने कहा कि प्रदेश सरकार के नुमाइंदो द्वारा इतिहास को लेकर जो गलतियां व इतिहास से छेडछाड की गई है वह अब नासूर बन जाती है। संचालन प्रताप गौरव केंद्र निदेशक अनुराग सक्सेना ने किया। इस दौरान विश्व संवाद केन्द्र के कमल प्रकाश रोहिल्ला भी उपस्थित थे।



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