सिस्टम फेल करने में जुटे मन्झले अधिकारी !
> आबकारी की लिकर पॉलिसी व लिकर सोर्स कि नहीं हो रही पालना...
हरीश गुप्ता
जयपुर। आबकारी विभाग का दुर्भाग्य है कि यूं तो यह हर चीज के सिस्टम बने हुए हैं लेकिन मन्झले स्तर के अधिकारी सिस्टम को फेल करने में जुटे हुए हैं। अब चाहे बड़े स्तर पर कितना भी ईमानदार अधिकारी को बिठा दिया जाए मन्झले अधिकारी सिस्टम बनने ही नहीं देते।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस बात को भांप गए थे और उन्होंने विभाग में बड़े स्तर पर आमूल चूल परिवर्तन कर बेदाग छवि वाले अधिकारी लगा दिए। ऐसे अधिकारियों की कुर्सी संभालने के बाद भी सिस्टम तैयार नहीं हो पाया।
विभाग ने यूं तो हर चीज का सिस्टम बनाया हुआ है। जैसे प्रत्येक दुकान ने रोजाना कितनी शराब/बीयर बेची उसका रोजाना ऑनलाइन निर्धारित प्रपत्र विभाग को भेजना होता है। जिसने रोजाना की सेल परचेज और बचा स्टॉक दर्शाया जाता है।
ऑनलाइन आने वाले इस प्रोफार्मा को देखते ही पता चल जाता है उक्त दुकानों की जन्मपत्री। नियमों को देखें तो प्रोफार्मा से फिजिकल वेरिफिकेशन निरीक्षकों को करना होता है। निरिक्षकों ने कब किया, कैसे किया उन्हें खुद अच्छी तरह से पता है।
सूत्रों की मानें तो विभाग में संविदा पर लगे कुछ कर्मचारी तो 'कुबेर' बने हुए हैं क्योंकि हर दुकान से समय-समय पर 'प्रसाद' वहीं लेकर आते हैं। उसका एक कारण यह भी है कि एसीबी से डर तो सभी को लगता ही है।
यहां यह भी बता दें कि ऑनलाइन प्रोफार्मा भरने का नियम को सख्ती से लागू है, नहीं भरने पर भारी जुर्माने का भी प्रावधान है, लेकिन सब खानापूर्ति की चल रही है।
ऑनलाइन प्रोफार्मा लाॅकडाउन से 1 दिन पहले जो विभाग को मिला, उससे यह क्लियर हो जाएगा की ठेकों में कितनी लाखों लीटर शराब बंद पड़ी है। लेकिन हम दावा करते हैं जब माल हैंड ओवर करने का वक्त आएगा 2% दुकानों को छोड़कर कोई भी फिट नहीं मिलेगी। उसका कारण एक तो यह है कि 'चोर' गेट और सील टूटने वालों ने खेल कर दिया। लेकिन उससे बड़ा कारण यह है कि ऑनलाइन प्रोफार्मा का कभी वेरिफिकेशन हुआ ही नहीं। बस इसे औपचारिकता मात्र बनाया हुआ है।
कई जगह बिक रही हथकढ़ शराब -
राजधानी जयपुर में ऐसी कई बस्तियां है जहां भारी मात्रा में हथकढ़ शराब बिक रही है। यह शराब जगतपुरा, झालाना, मुहाना, जामडोली आदि जगह तैयार हो रही है और थैलियों में भरकर दूध के ड्रम में छुपाकर बस्तियों तक लाई जा रही है। क्या विभाग को इसकी भनक तक नहीं लग रही? क्या विभाग का सूचना तंत्र बिल्कुल फेल हो गया? क्या इसमें कोई मिलीभगत तो नहीं?
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